Computer & Mobile ( Hacking Tips & Trick)

My Computer takes a long time to
load the desktop
Problem:
When I turn on my computer and log in, my
computer takes a long time to load the desktop
and system tray icons.How do i get rid of it?
And fix the the desktop problem?
Solution:
Your windows takes long time to load because of
so many reasons like Virus,Damaged Registry,
Fragmented Hard Disk, too many startup items,
less memory space. I have already discussed in
detail about these things in 5 Reasons that slows
down your computer performance post.In this
post I am going to show to easy fix a slower PC.
Removing Unwanted startup
Items.
Fixing HDD Errors.
Now lets see these things in detail.
1. Remove Unwanted Startup Items
Goto Start–>Run .
Type msconfig and hit Enter .
Navigate to Startup tab .
http://www.xdefinite.com/images/MsconfigSta
Keep Antivirus,Instant
messenger, and other important
applications to load in system
tray.
Remove unwanted application .It
will pull down your PC
performance.
2. Fixing Hard Disk Errors
Hard disk error occurs mainly due to improper
shutdown.Its also one of the main reason which
makes windows to take long time to load.
Goto Start –> Run .
Type CMD and hit enter.
Type chkdsk and hit enter.
It Check disk command checks
error in HDD and fixes it.
Now fix errors in other drives.
D,E,F,G,H ,….
Type CHKDSK /F for drives other
than C and fix HDD error .
Checkout Tansparent/Glass Command Prompt
For Xp and Vista | List Of 185 Windows Xp
Commands
I hope these two simple methods will fix your
problem

गुर्दे की सूजन BRIGHTS DISEASE NEPHRITIS

परिचय :
कभी-कभी गुर्दे में खराबी के कारण गुर्दे
(वृक्क) अपने सामान्य आकार से बड़े हो जाते हैं और
उसमें दर्द होता है। इस तरह गुर्दे को फूल जाने को गुर्दे
की सूजन कहते हैं। इसमें दर्द गुर्दे के स्थान से चलकर
कमर तक फैल जाता है।
लक्षण :
गुर्दे रोगग्रस्त होने से रोगी का पेशाब पीले रंग
का होता है। इस रोग से पीड़ित रोगी का शरीर
भी पीला पड़ जाता है, पलके सूज जाती हैं, पेशाब
करते समय कष्ट होता है, पेशाब रुक-रुककर आता,
कभी-कभी अधिक मात्रा में पेशाब आता, पेशाब के
साथ खून आता है और पेशाब के साथ धातु
आता (मूत्रघात) है। इस रोग से पीड़ित रोगी में
कभी-कभी बेहोशी के लक्षण भी दिखाई देते हैं।
भोजन तथा परहेज :
गुर्दे की सूजन से पीड़ित रोगी को भोजन करने के
बाद तुरन्त पेशाब करना चाहिए। इससे गुर्दे
की बीमारी, कमर दर्द , जिगर के रोग, गठिया, पौरुष
ग्रंथि की वृद्धि आदि अनेक बीमारियों से बचाव
होता है।
ज्यादा मात्रा में दूध, दही, पनीर व दूध से बनी कोई
भी वस्तु न खाएं। इस रोग से पीड़ित
रोगी को ज्यादा मांस, मछली, मुर्गा,
ज्यादा पोटेशियम वाले पदार्थ, चॉकलेट, काफी ,
दूध, चूर्ण, बीयर, वाइन आदि का सेवन
नहीं करना चाहिए।
इस रोग में सूखे फल, सब्जी, केक, पेस्ट्री, नमकीन,
मक्खन आदि नहीं खाना चाहिए।
विभिन्न औषधियों से उपचार-
1. फिटकरी : भुनी हुई फिटकरी 1 ग्राम दिन में कम
से कम 3 बार लेने से गुर्दे की सूजन दूर होती है।
2. दालचीनी : दालचीनी खाने से गुर्दे
की बीमारी मिटती है।
3. सत्यानाशी : सत्यानाशी का दूध सेवन करने से
गुर्दे का दर्द, पेशाब की परेशानी आदि दूर होती है।
4. तुलसी : छाया में सुखाया हुआ 20 ग्राम
तुलसी का पत्ता, अजवायन 20 ग्राम और सेंधानमक
10 ग्राम को पीसकर चूर्ण बना लें और यह चूर्ण
प्रतिदिन सुबह-शाम 2-2 ग्राम की मात्रा में गुनगुने
पानी के साथ लें। इसके सेवन से गुर्दे की सूजन के
कारण उत्पन्न दर्द व बैचनी दूर होती है।
5. नारंगी : सुबह नाश्ते से पहले 1-2 नांरगी खाकर
गर्म पानी पीना चाहिए या नारंगी का रस
पीना चाहिए। इससे गुर्दे की सूजन व अन्य रोग ठीक
होता है। नारंगी गुर्दो को साफ रखने में
उपयोगी होता है। गुर्दे के रोग में सेब और अंगूर
का उपयोग करना भी लाभकारी होता है।
गुर्दो को स्वस्थ रखने के लिए सुबह खाली पेट
फलों का रस उपयोग करें।
6. गाजर : गुर्दे के रोग से पीड़ित रोगी को गाजर के
बीज 2 चम्मच 1 गिलास पानी में उबालकर
पीना चाहिए। इससे पेशाब की रुकावट दूर होती है
और गुर्दे की सूजन दूर होती है।
7. बथुआ : गुर्दे के रोग में बथुआ फायदेमन्द होता है।
पेशाब कतरा-कतरा सा आता हो या पेशाब रुक-
रुककर आता हो तो इसका रस पीने से पेशाब खुलकर
आने लगता है।
8. अरबी : गुर्दे के रोग और गुर्दे
की कमजोरी आदि को दूर करने के लिए
अरबी खाना फायदेमन्द होता है।
9. तरबूज : गुर्दे के सूजन में तरबूज खाना फायदेमन्द
होता है।
10. ककड़ी : गाजर और ककड़ी या गाजर और शलजम
का रस पीने से गुर्दे की सूजन, दर्द व अन्य रोग ठीक
होते हैं। यह मूत्र रोग के लिए
भी लाभकारी होता है।
12. आलू : गुर्दे के रोगी को आलू खाना चाहिए।
इसमें सोडियम की मात्रा बहुत पायी जाती है और
पोटेशियम की मात्रा कम होती है।
13. चंदन : चंदन के तेल की 5 से 10 बूंद बताशे पर
डालकर दूध के साथ प्रतिदिन 3 बार खाने से गुर्दे
की सूजन दूर होती है और दर्द शान्त होता है।
14. सिनुआर : सिनुआर के पत्तों का रस 10 से 20
मिलीलीटर सुबह-शाम खाने से गुर्दे की सूजन
मिटती है। साथ ही सिनुआर, करन्ज, नीम और धतूरे के
पत्तों को पीसकर हल्का गर्म करके गुर्दे के स्थान पर
बांधने से लाभ मिलता है।
15. हुरहुर : पीले फूलों वाली हुरहुर के
पत्तों को पीसकर नाभि के बाएं व दाएं तरफ लेप
करने से फायदा होता है।
16. कलमीशोरा : कलमीशोरा लगभग 1 ग्राम
का चौथा भाग से लगभग 1 ग्राम की मात्रा में
गोखरू के काढ़े के साथ मिलाकर सुबह-शाम पीने से
लाभ मिलता है। यह गुर्दे की पथरी के साथ होने
वाले दर्द को दूर करता है।
17. आम : प्रतिदिन आम खाने से गुर्दे
की कमजोरी दूर होती है।
18. मकोय : मकोय का रस 10-15 मिलीलीटर
की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पेशाब
की रुकावट दूर होती है। इससे गुर्दे और मूत्राशय
की सूजन व पीड़ा दूर होती है।
19. जंगली प्याज : कन्द का चूर्ण, ककड़ी के बीज
और त्रिफला का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर
आधा चम्मच दिन में 2 बार सुबह-शाम प्रतिदिन
खिलाने से गुर्दे के रोग में आराम मिलता है।
20. मूली :
गुर्दे की खराबी से यदि पेशाब बनना बन्द
हो गया हो तो मूली का रस 20-40 मिलीलीटर
दिन में 2 से 3 बार पीना चाहिए।
पेशाब में धातु का आना (मूत्राघात) रोग में
मूली खाना लाभकारी होता है।
मूली के पत्तों का रस 10-20 मिलीलीटर और
कलमीशोरा का रस 1-2 मिलीलीटर को मिलाकर
रोगी को पिलाने से पेशाब साफ आता है और गुर्दे
की सूजन दूर होती है।
प्रतिदिन आधा गिलास मूली का रस पीने से पेशाब
के समय होने वाली जलन और दर्द दूर होता है।
21. अडूसा (वासा) : अडूसे और नीम के पत्ते को गर्म
करके नाभि के निचले भाग पर सिंकाई करें और अडूसे
के पत्तों का 5 मिलीलीटर रस व शहद 5 ग्राम
मिलाकर पीने से गुर्दे के भयंकर दर्द तुरन्त ठीक
होता है।
22. पान : पान का सेवन करने से गुर्दे की सूजन व अन्य
रोग में लाभ मिलता है।
23. पुनर्नवा : पुनर्नवा के 10 से 20 मिलीलीटर पंचांग
(जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) का काढ़ा सेवन करने
से गुर्दे के रोगों में बेहद लाभकारी होता है।
24. नींबू :
नींबू के पेड़ की जड़ का चूर्ण 1 ग्राम पानी के साथ
दिन में 2 बार सेवन करने से गुर्दे की बीमारी में लाभ
मिलता है।
लौकी के टुकड़े-टुकड़े करके गर्म करके दर्द वाले जगह पर
रखने और इसके रस से मालिश करने से गुर्दे का दर्द जल्द
ठीक होता है।
25. लौकी : लौकी के रस से गुर्दे वाले स्थान पर
मालिश करने और पीस करके लेप करने से गुर्दे का दर्द
तुरन्त कम हो जाता है।
26. अंगूर : अंगूर की बेल के 30 ग्राम पत्ते को पीसकर
नमक मिले पानी में मिलाकर पीने से गुर्दे का दर्द
ठीक होता है।
27. अपामार्ग : अपामार्ग की 5-10 ग्राम
ताजी जड़ को पानी में घोलकर गुर्दे के दर्द से
पीड़ित रोगी को पिलाने से दर्द में तुरन्त आराम
मिलता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-
टुकड़े करके निकाल देती है।
28. एरण्ड : एरण्ड की मींगी को पीसकर गर्म करके
गुर्दे वाले स्थान पर लेप करने से गुर्दे की सूजन व दर्द
ठीक होता है।

आंखों के रोग तथा सुरक्षा Diseases and care of eyes

परिचय-
आंखें हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण
अंग होती हैं। इसलिए हमें
इनकी देखभाल और सुरक्षा में अधिक से अधिक
सावधानी बरतनी चाहिए।
आंखों की छोटी-
छोटी और साधारण
बीमारियां छोटी परेशानी से लेकर
अंधेपन का शिकार तक बना सकती है। हमारे देश में
प्रतिवर्ष हजारों लोग अंधेपन के शिकार होते हैं। कई बार
छोटी सी लापरवाही से हम
लोग अपने जीवन की सबसे अमूल्य
धरोहर से हाथ धो बैठते हैं।
आंखों की छोटी-
छोटी समस्याओं पर ध्यान देकर
तथा सही समय पर उपचार करके
आंखों को बचाया जा सकता है। यदि आंखों में
छोटी सी भी तकलीफ
हो तो हमें शीघ्र ही आंखों के विशेषज्ञ
के पास जाकर आंखों की जांच
करानी चाहिए। हमारे देश की ज्यादातर
निरक्षर जनता को सभी प्रचार-साधनों को इस्तेमाल
करके बुनियादी स्वास्थ्य
जानकारी (विशेषकर
आंखों की जानकारी)
लेनी चाहिए।
हमें केवल इस बात
का ही नहीं ध्यान रखना चाहिए
कि आंखों में कोई तकलीफ होने पर तुरन्त नेत्र
विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए
बल्कि आंखों को किसी कष्ट या हानि से बचाने के लिए
बचाव के उपाय जीवन के प्रारम्भ से अपनाने चाहिए।
घरेलू स्तर पर
मां की जिम्मेदारी होती है
कि वह अपने बच्चों की आंखों पर प्रारम्भ से ध्यान
देना चाहिए। आंखों को किसी प्रकार के चोट , संक्रमण,
इंफेक्शन से, धूल, धुएं, कंकड़, तिनके से,
किसी रसायन के दुष्प्रभाव से, अधिक
टेलीविजन देखने, कम्प्यूटर गेम से, तेज
रोशनी के इस्तेमाल से ही अधिकतर
आंखों को हानि पहुंचती है। इसलिए
आंखों की सुरक्षा और
चिकित्सा की सावधानी जीवनपर्यन्त
रखनी चाहिए।
गर्भावस्था में स्त्रियों की आंखों की
देखभाल और सुरक्षा-
आंखों की देखभाल और सुरक्षा के लिए
बच्चे पर गर्भावस्था के समय से ही ध्यान
देना चाहिए। इसके लिए एक तो मां के भोजन में प्रोटीन
और विटामिन उचित मात्रा में होना चाहिए। दूसरा एंटी-
बायोटिक दवाओं और एंटी-मलेरिया आदि दवाओं से
बचना चाहिए। गर्भवती महिलाओं
को बीमारी होने की अवस्था में
डॉक्टर को अपनी स्थिति बना देनी चाहिए।
प्रसव के बाद शिशु की आंखों की
देखभाल-
प्रसव के बाद शिशु
की आंखों की अच्छी प्रकार
से साफ-सफाई होनी चाहिए। अन्यथा जन्म के समय
की गन्दगी से उसकी आंखों में
इन्फेक्शन हो सकता है। हॉस्पिटलों में यह काम नर्से
अच्छी प्रकार से कर लेती हैं। घर पर
प्रसव होने की स्थिति में प्रशिक्षित और प्रसव
क्रिया में कुशल दाई को ही बुलाना चाहिए तथा स्वयं
भी देख लेना चाहिए कि शिशु की आंखें
अच्छी प्रकार से साफ की गई है
कि नहीं। यदि बच्चे के जन्म के एक सप्ताह बाद
बच्चे की आंखों से पानी आना शुरू हो जाए
तो सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि बच्चे
की पैदायशी नजर कमजोर
भी हो सकती है। ध्यान से
निरीक्षण करने पर दो सप्ताह बाद इसका पता चल
जाता है, नहीं तो एक महीने तक
अवश्य ही आंखों के विशेषज्ञ से जांच
करवानी चाहिए। ध्यान से जांच करने पर दो सप्ताह
बाद ही इसका पता चल जाता है।
हमारे देश में अभी भी एक
बड़ी गलत धारणा है कि काजल, सुरमा डालने से बच्चे
की आंखें बड़ी तथा सुन्दर
लगती है। आंखों की विभिन्न प्रकार
की बीमारियां इन्हीं के कारण
होती है क्योंकि अक्सर सुरमा या काजल
पूरी शुद्धता से नहीं बनाया जाता है।
इसी कारण से डॉक्टर काजल, सुरमे के इस्तेमाल करने
को रोकते हैं।
छोटे बच्चों की सुरक्षा-
छोटे बच्चों को खसरा और दाने (छोटी माता)
के निकलने पर बहुत अधिक सावधानी बरतने
की जरूरत होती है। इससे अधिकतर
बच्चों की आंखों में इंफेक्शन हो जाता है।
ऐसी स्थिति में नेत्ररोग विशेषज्ञ से बच्चे
की चिकित्सा करानी चाहिए। इस तरह से
खसरा और छोटी माता में आंखों पर विशेष ध्यान देने से
रोग के आगे बढ़ने
की आशंका नहीं होती है।
बड़े बच्चों की आंखों की देखभाल और
सुरक्षा-
बाहर जाकर खेलने वाले बड़े
बच्चों को भी इस बारे में विशेष प्रशिक्षण देकर
अच्छी आदतें सिखाई जाने चाहिए। खेलते समय उन्हें
अपने हाथों को साफ रखने के लिए बताइये। खेलकर आने के बाद
अच्छी तरह से हाथ धोकर कोई चीज
खाने के लिए देना चाहिए। घर के सभी सदस्यों के लिए
अलग-अलग तौलिया होना चाहिए। आंखों से पीड़ित
रोगी के कपड़े और तौलिए अलग-अलग होने चाहिए।
हर बार तौलिया, रुमाल से ही आंखें
पोंछनी चाहिए। बच्चे की आंखों में कुछ
गिर जाने से मैले आंचल या गन्दे रुमाल से
आंखों की सफाई
नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार
की छोटी-छोटी बातों का ध्यान
रखने से आंखे स्वस्थ बनी रहती है।
बच्चों को तेज धूप में खेलने से रोकना चाहिए।
बच्चों को गिल्ली-डण्डा और क्रिकेट खेलते समय
अपनी और
साथी खिलाड़ी की आंखों की सुरक्षा का ध्यान
रखना चाहिए।
होली की पिचकारी से
आंखों को बचाना चाहिए। यात्रा के समय रेल
की खिड़की के पास
नहीं बैठना चाहिए। यदि बच्चे जिद करें तो उन्हें
विपरीत दिशा में मुंह करके बैठा देना चाहिए ताकि उड़ते
हुए धूल के कण उनकी आंखों में न पडे़।
यदि गलती से धूल के कण, कोयला आदि आंखों में गिर
जाते हैं तो तुरन्त ही आंखों को नीचे
की ओर करके जोर-जोर से झपकाना चाहिए
ताकि आंखों से कोयला या धूल के कण बाहर निकल जाए।
ऐसे समय में आंख
नहीं मलनी चाहिए। यदि इस प्रकार से
आंखों में से कंकड़ न निकलता हो तो आंखों में पानी के
छींटे मारें या साफ मुलायम रुमाल के कोने से बहुत
ही सावधानी से बाहर निकाल देना चाहिए।
यदि फिर भी शिकायत हो तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
महिलाओं को प्रारंभ से ही देखना चाहिए
कि उनका बच्चा किताबें ठीक से लेकर बैठता है
या नहीं। कहीं वह पुस्तक एकदम
आंख के पास सटाकर तो नहीं बैठता है या पढ़ते
समय एक आंख का अधिक उपयोग करता हो। इन बातों को विशेष
रूप से ध्यान देना चाहिए। यदि बच्चा किताबें बिल्कुल अपने पास
करके पढ़ता हो तो इससे पता चलता है
कि उसकी आंख कमजोर है।
ऐसी स्थिति में उसे नेत्ररोग विशेषज्ञ के पास ले
जाना चाहिए। यदि नेत्ररोग विशेषज्ञ बच्चे को चश्मा लगवाने
को बोलते हैं तो उसे अवश्य लगवाना चाहिए।
इसके परिणाम स्वरूप नजर पर अधिक जोर देने से बच्चे
की आंखें कमजोर
होती चली जाएंगी। कुछ
लोगों को डर होता है कि यदि हम
अपनी लड़की को अभी से
ही चश्मा लगवा देगें
तो उसकी शादी आसानी से
नहीं हो पायेगी। इसलिए वे
अपनी लड़कियों को चश्मा नहीं लगाते हैं।
चश्मा लगाने से व्यक्ति की सुन्दरता नष्ट
नहीं होती है। इसे लगाने से आंखे
सुरक्षित बनी रहती हैं। फिर
भी यदि चश्मा न लगवाना चाहें तो आजकल `कौटेक्ट
लैंसेज` भी मिलते हैं, उन्हें लगाना चाहिए। कुछ
अपवादों को छोड़कर यह सभी को ठीक
प्रकार से फिट बैठ जाते हैं। आंखों के बारे में
किसी भी प्रकार
की लापरवाही ठीक
नहीं होती है।
आंखों के कमजोर होने पर उनका इलाज अवश्य
ही कराना चाहिए।
आंखों की कमजोरी में विटामिन `ए´ युक्त
खाना, अण्डा, मीट, पपीता, कद्दू, आम,
गाजर आदि का सेवन करना लाभकारी होता है। इससे
नाइट-ब्लांइडनेस (रतौंधी)
की बीमारी नहीं होती है।
इस बीमारी में रात को कम दिखाई पड़ता है।
यह बीमारी अधिक दिनों रहने से
रोगी अंधा भी हो सकता है। कम्प्यूटर
पर अधिक समय तक काम करना तथा अधिक समय तक
टेलीविजन देखना भी आंखों के लिए
हानिकारक होता है।
यदि विवाहित पति और
पत्नी दोनों ही चश्मा लगाते
हों तो दोनों का नंबर मिलकर `हाई` नहीं जाना चाहिए,
क्योंकि इसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने
वाली सन्तान की आंखें
भी कमजोर हो सकती हैं। यदि दोनों में
एक का नंबर कम और दूसरे का अधिक हो और मिलकर
भी बहुत अधिक न जाए तो दोनों के चश्मा लगाने पर
भी किसी प्रकार से हानिकारक
नहीं होता हो। इस बारे में डॉक्टर की राय
अवश्य ही ले लेनी चाहिए।
स्त्रियों की आंखों की देखभाल और
सुरक्षा-
स्त्रियों को झाड़ू लगाते समय, सामान पर धूल-
मिट्टी साफ करते समय आंखों का विशेष ध्यान
रखना चाहिए कि कहीं धूल या मिट्टी के
कण आंखों में न पड़ जाए। धूल भरी आंधियों के आने
पर आंखों को कपडे़ से ढक लेना चाहिए। कोयला,
लकड़ी या चूल्हा जलाते समय
भी आंखों का ध्यान रखना चाहिए। आंखों को चूल्हे
तथा मिल के निकलने वालों धुंओं से बचाकर रखना चाहिए। वर्तमान
समय में वातावरण धुएं
तथा जहरीली गैसों आदि से प्रदूषित
हो गया है जिसके कारण आंखों की सुरक्षा बहुत
ही आवश्यक हो गई है।
इसलिए यह कहना व्यर्थ है कि बड़े-
बूढ़ों की आंखे आज तक अच्छी है
क्योंकि उनके समय में वातावरण में इतना अधिक प्रदूषण
नहीं था। वर्तमान समय में शुद्ध
हवा नहीं मिल पा रही है
तथा मिलावटी खाद्य-पदार्थों, पढ़ाई,
टी.वी. तथा मानसिक तनाव आदि का जोर
भी आंखों पर पड़
रहा तो बिना आंखों की सुरक्षा किए हुए
नहीं रहा जा सकता है। यदि आपको मधुमेह
की बीमारी
हो तो उसको नियंत्रण में रखना चाहिए।
नहीं तो आंखों के परदे से नजर कमजोर होकर,
अंधेपन की नौबत आ सकती है।
पढ़ाई-लिखाई और आंखों से सम्बन्धित विभिन्न कार्य-
स्त्रियों को सिलाई-बुनाई,
चित्रकारी आदि करते समय सही प्रकार
की मुद्रा में बैठकर काम करना चाहिए अन्यथा नजर
के जल्दी कमजोर हो जाने
की आशंका रहता है। पढ़ाई करते समय
रोशनी न तो अधिक तेज और न ही अधिक
मन्द नहीं होनी चाहिए जिसके कारण
आंखें चौंधियाने न लगे और आंखों पर विपरीत प्रभाव न
पडे़। पढ़ाई करते समय टेबल लैम्प या ट्यूब लाइट का प्रयोग
करना चाहिए। इसी प्रकार हमेशा बैठकर
ही पढ़ना चाहिए। लेटकर पढ़ने से आंखों पर
बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। यदि आपको लेटकर
ही पढ़ने की इच्छा हो तो पुस्तक और
आंखों के बीच उचित
दूरी होनी चाहिए ताकि आंखों पर कम से
कम जोर पड़े। लगातार पढ़ने-लिखने, घंटों भर
टी.वी. के सामने बैठने से आंखे थक
जाती हैं।
टी.वी. देखते समय
टी.वी.
की स्क्रीन से आंखों के बीच
की दूरी लगभग 10 फुट
की दूरी होनी चाहिए। पिक्चर
आदि देखते समय आंखों को बीच-बीच में
जरूर झपकाना चाहिए। इससे आंखों में थकान
नहीं होती है। आंखों के थक जाने पर
अपनी दोनों हथेलियों से आंखों को बन्द करके कुछ देर
तक आराम देना चाहिए। इसके बाद हवा में टहलना चाहिए।
आंखों में ठण्डे पानी की छींटे
आदि देनी चाहिए। गर्मी के दिनों में
ठण्डा किया हुआ गुलाबजल और थकान-तनाव और
मामूली कष्ट में डॉक्टर से पूछकर आंखों में आई-
ड्रॉप्स डालना चाहिए। ऐसा करने से आंखों को थकान से राहत
मिलेगी।
लगभग 40 वर्ष की आयु के
लोगों को यदि अपनी नजर
थोड़ी सी भी कमजोर लगे
तो उन्हे चश्मा अवश्य ही लगवा लेना चाहिए।
आंखों में दर्द , थकान, आंखों से पानी बहना , रात
को कम दिखाई पड़ना, आंखों के आगे रंगीन तारे दिखाई
पड़ना, कीचड़ आना, आंखों में लाली या
खुजली का होना तथा पास की नजर
ठीक हो तथा दूर की नजर कमजोर
हो तो तुरन्त ही चिकित्सक की राय
लेनी चाहिए।
भोजन और व्यायाम का आंखों पर प्रभाव-
प्रोटीन, विटामिन, विशेष रूप से विटामिन `ए`
युक्त सन्तुलित और पौष्टिक भोजन, पेट की सफाई
और सामान्य व्यायाम करके यदि हम अपने पेट स्वास्थ को बनाए
रखे तो आंखों के किसी भी प्रकार विशिष्ट
भोजन या विशेष प्रकार के
व्यायामों की आवश्यकता नहीं होती है।
परन्तु
आंखों की किसी तकलीफ में
विशेष भोजन और व्यायाम के लिए डॉक्टर की राय
अवश्य ही लेनी चाहिए।

दांतों के रोग Dental problem-2

परिचय-
अक्सर हम जो भोजन करते हैं या कोई
भी चीज खाते हैं तो उसके जो छोटे-छोटे
कण होते हैं वे दांतों के बीच के
खाली स्थान में फंस जाते हैं और कुछ समय बाद ये
फंसे हुए कण दांतों में सड़न या कीड़े पैदा करते हैं।
इसलिए जैसे ही हम लोग कुछ भी खाते
हैं तो उसके तुरन्त बाद दांतों को ब्रश से साफ करना चाहिए
ताकि अगर दांतों में कुछ फंसा भी हो तो वे ब्रश करने
पर निकल जाए।
लक्षण और कारण-
दांतों की अच्छी तरह सफाई न
होने के कारण जब दांतों के सड़ने की शुरूआत
होती है तो शुरू मे तो दांतों मे
किसी भी तरह
की परेशानी नहीं होती लेकिन
कुछ समय बाद ज्यादा ठण्डे पदार्थ
या ज्यादा मीठी चीजें सेवन
करने पर दांतों में दर्द पैदा हो जाता है। अगर
ऐसी कोई परेशानी महसूस हो तो तुरन्त
ही दांतों के डॉक्टर के पास जाए
नहीं तो ये सड़न दांतों की जड़ों में
पहुंचकर दांतों में जख्म बना सकती है।
कभी-कभी किसी-
किसी दांत में छेद हो जाता है। ऐसे में शुरूआत में
ही दांत को भरवाकर दांत को खराब होने से
बचाया जा सकता है। लेकिन अगर दांत के छेद को शुरू में
ही भराया न जाए तो कुछ समय के बाद दांत
को निकालकर नकली दांत लगाना पड़ सकता है। अगर
दांत निकाला जाए और उसके स्थान पर कोई दांत न लगाया जाए तो उस
दांत के आसपास के दांत भी हिलने लगते हैं और
नीचे के जबड़े पर भी इसका असर पड़ने
लगता है। जिसके कारण जबड़ों की क्रिया प्रभावित
होकर जबड़ों का संधिवात हो जाता है और
व्यक्ति की बोली भी खराब
हो जाती है। इसी कारण से निकाले गए
दांत के खाली स्थान पर दांत लगवाना बहुत
जरूरी होता है। ये नकली दांत
ऐसा भी हो सकता है कि जिसे आप जब चाहे निकाल
दें या लगा दें या फिर ऐसा भी जो पूरी तरह
से फिक्स कर दिया जाता है।
दांतों की चिकित्सा-
अगर आप चाहते हैं कि आपके दांत हमेशा स्वस्थ और
चमकते रहें तो इसके लिए सबसे पहले आपको अपने रोजाना करने
वाले भोजन में कैल्शियम, फास्फोरस और विटामिन `डी´
और `सी´
की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। विटामिन
`सी, से मसूढ़े स्वस्थ बने रहते है। ऐसे
ही विटामिन `डी´ शरीर में
कैल्शियम की जरूरत को पूरा करता है।
दांतों को स्वस्थ रखने वाले पोषक तत्त्व दूध, पनीर,
मक्खन, फल, अण्डे, मांस, मछली, अजमोद , गाजर
जैसी खाने वाली चीजों में भरपूर
मात्रा में मिलते हैं। चाकलेट, मिठाई और
ज्यादा मीठी चीजें कम
खानी चाहिए क्योंकि ऐसी चीजें
मुंह में पहले से मौजूद जीवाणुओं के साथ मिलाकर
दांतों का नुकसान पहुंचाती है।
दांतों को रोजाना सुबह उठने के बाद और रात को सोने से पहले
अच्छी तरह से साफ करना चाहिए। अगर दांतों पर
लाल या पीले धब्बे पड़ गए हों तो उन्हे 2 चम्मच
नमक और सोड़ा मिलाकर साफ करने से बहुत लाभ होता है। अगर
नमक को नींबू के रस में मिलाकर भी दांत
साफ किए जाए तो भी दांतों के लिए बहुत अच्छा साबित
होता है। 1 स्ट्रोबेरी को दांतों पर रगड़ने से न केवल
मुंह का स्वाद ठीक होता है बल्कि दांत चमक
भी जाते हैं।
अगर दांत के अन्दर बड़ा सा छेद हो तो रूई के फाहे को शराब या
लौंग के तेल में भिगोकर दांत के छेद में भर दें।