ब्रह्मचर्य व्याख्यान का उद्देश्य:-

ब्रह्मचर्य व्याख्यान का उद्देश्य:-
1. काम तत्त्व के बारे में
मोटी जानकारी हो जाए।
2. वीर्य क्षरण से नुकसान व रक्षण के लाभ
समझ में आए।
3. शारीरिक व मानसिक
ऊर्जा को उध्र्वगामी बनाने का संकल्प जागे।
4. वीर्य रक्षा के उपाय स्पष्ट हो जाए।
5. नारी के पवित्र दृष्टि जागे।
मित्रो! ‘‘ब्रह्मचर्य’’ शब्द से आप सभी परिचित
होंगे। पर ब्रह्मचर्य क्या है? इसे कैसे साधा जाता है? इसके
लाभ हानि क्या-क्या है? आदि विषयों पर शायद
ही आप जानते होंगे। आज हम इस कक्षा में
यही सब जानने समझने की कोशिश
करेंगे।
भाईयो! ब्रह्मचर्य एवं काम तत्त्व के बारे में आपको यहाँ से
जो जानकारी दी जाएगी उससे
आपके बहुत से भ्रम भी दूर होंगे। यह विषय
इतना अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, कि इसके
सही जानकारी के बिना मनुष्य
का जीवन भटकाव भरा और शक्तिहीन
हो जाता है। पुरातनकाल में हमारे गुरुकुल शिक्षा पद्धति में
ब्रह्मचर्य अनिवार्य हुआ करता था। जिसका परिणाम
था कि भारत हर क्षेत्र में शक्ति सम्पन्न रहा।
यहाँ वीर योद्धा, ज्ञानी,
तपस्वी व ऋषि स्तर के लोग हुए। पर आज
हमारा दुर्भाग्य है, कि पाश्चात्य अपसंस्कृति के प्रभाव में
आकर हम बर्बाद हो गये।
ब्रह्मचर्य के बारे में यदि यह कहा जाय
कि जीवन में सफलता प्राप्त करने का ‘मास्टर
की’ है
तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
ब्रह्मचर्य का शब्दार्थ है वह आचरण जिससे ब्रह्म
अर्थात् परमात्मा साक्षात्कार होता है।
आयुर्वेद के मतानुसार मनुष्य के शरीर में सात धातु
होते हैं- जिनमें अन्तिम धातु वीर्य (शुक्र) है।
वीर्य ही मानव शरीर
का सारतत्व है। आइए जानें वीर्य बनने
की प्रक्रिया-भोजन-रस-रक्त-मांस-मेदा-अस्थि-
मज्जा-वीर्य। भोजन से रस बनने में 5 दिन लगते
हैं फिर रस से रक्त बनने में 5 दिन लगते हैं। आगे 5-5 दिन
का क्रम चलता है, तब कहीं जाकर अन्त में
वीर्य बनता है। इस प्रकार भोजन से
वीर्य तैयार होने में 35 दिन लग जाते हैं। मनुष्य
एक दिन में औसतन 800 ग्राम भोजन करता है, जिससे 53 दिन
बाद आधा ग्राम वीर्य तैयार होता है। 40 बूंद रक्त
से 1 बूंद वीर्य होता है। एक बार के
वीर्य स्खलन से लगभग 15 ग्राम
वीर्य का नाश होता है जो कि 30 दिन के 24
कि.ग्रा. भोजन से तैयार होता है। जिस प्रकार पूरे गन्ने में
शर्करा व्याप्त रहता है उसी प्रकार
वीर्य पूरे शरीर में सूक्ष्म रूप से
व्याप्त रहता है। मैथून के द्वारा पूरे शरीर में मंथन
चलता है और शरीर का सार तत्व कुछ
ही समय में बाहर आ जाता है। रस निकाल लेने
पर जैसे गन्ना छूंट हो जाता है कुछ वैसे ही स्थित
वीर्यहीन मनुष्य
की हो जाती है। ऐसे मनुष्य
की तुलना मणिहीन नाग से
भी की जा सकती है।
शरीर में वीर्य संरक्षित होने पर
आँखों में तेज, वाणी में प्रभाव, रोग प्रतिरोधक
क्षमता, कार्य में उत्साह एवं प्राण ऊर्जा में
अभिवृद्धि होती है।
माली की कहानी-गुलाब
का बगीचा..........फूलों से इत्र..........इत्र
को नली में डाल दिया...................।
स्वामी शिवानंद जी ने मैथुन के आठ
प्रकार बताए हैं जिनसे बचना ही ब्रह्मचर्य है
- 1. स्त्रियों को कामुक भाव से देखना। 2. उन्हें स्पर्श करना।
3. सविलास की क्रीड़ा करना। 4.
स्त्री के गुणों की प्रशंसा करना। 5.
एकांत में संलाप करना। 6. कामुक कर्म का दृढ़ निश्चय करना।
7. तुष्टिकरण की कामना से स्त्री के
निकट जाना। 8. क्रिया निवृत्ति अर्थात् वास्तविक रति क्रिया।
इसके अतिरिक्त विकृत यौनाचार से
भी वीर्य
की भारी क्षति हो जाती है।
हस्तक्रिया (हस्त मैथुन से हानि समझाएँ) आदि इसमें शामिल
है। शरीर में व्याप्त वीर्य कामुक
विचारों के चलते अपना स्थान छोडऩे लगते हैं और अन्तत:
स्वप्रदोष आदि के द्वारा बाहर आ जाता है। ब्रह्मचर्य
का तात्पर्य वीर्य रक्षा से है। यह ध्यान रखने
की बात है कि ब्रह्मचर्य शारीरिक व
मानसिक दोनों प्रकार से होना जरूरी है। अविवाहित
रहना मात्र ब्रह्मचर्य नहीं कहलाता।
धर्म कर्त्तव्य के रूप में सन्तानोत्पत्ति और बात है और
कामुकता के फेर में पडक़र अंधाधुंध वीर्य नाश
करना बिलकुल भिन्न है। इस प्रकार के आचरण को संसार के
सब विद्वान और विचारकों ने गर्हित तथा मानव जीवन
को नष्ट-भ्रष्ट करने वाला माना है।
ब्रह्मचर्य का महिमा गान :-
भगवान बुद्ध - ‘‘भोग और रोग साथी है और
ब्रह्मचर्य आरोग्य का मूल है।’’
गुरुगोविन्द सिंह - ‘‘इंद्रिय संयम करो, ब्रह्मचर्य पालो, इससे
तुम बलवान और वीर्यवान बनोगे।’’
आयुर्वेदाचार्य वाग्भट्ट - ‘‘संसार में जितना सुख है वह आयु
के अधीन है और आयु ब्रह्मचर्य के
अधीन है।’’
छांदोग्योपनिषद् - ‘‘एक तरफ चारों वेदों का उपदेश और
दूसरी तरफ ब्रह्मचर्य,
यदि दोनों की तौला जाए तो ब्रह्मचर्य
का पलड़ा वेदों के उपदेश से पलड़े के बराबर रहता है।’’
भीष्मपितामह - ‘‘तीनों लोक के
साम्राज्य का त्याग करना, स्वर्ग का अधिकार छोड़ देना, इससे
भी कोई उत्तम वस्तु हो,
उसको भी छोड़ देना परन्तु ब्रह्मचर्य को भंग न
करना।’’
स्वामी रामतीर्थ - ‘‘जैसे
दीपक का तेल-बत्ती के द्वारा ऊपर
चढक़र प्रकाश के रूप में परिणित होता है, वैसे
ही ब्रह्मचारी के अन्दर
का वीर्य सुषुम्रा नाड़ी द्वारा प्राण बनकर
ऊपर चढ़ता हुआ ज्ञान-दीप्ति में परिणित
हो जाता है।’’
जीव शास्त्री डॉ० क्राउन
एम.डी . - ‘‘ब्रह्मचारी यह
नहीं जानता कि व्याधिग्रस्त दिन कैसा होता है।
उसकी पाचन शक्ति सदा नियमित
रहती है। उसकी वृद्धावस्था में
बाल्यावस्था जैसा ही आनन्द रहता है।’’
प्रो० रौवसन -
‘‘ब्रह्मचारी की बुद्धि कुशाग्र और
विशद होती है,
उसकी वाणी मोहक
होती है, उसकी स्मरण
शक्ति तीव्र होती है, उसका स्वभाव
आनन्दी और उत्साही होता है।’’
स्वामी विद्यानन्द - ‘‘ब्रह्मचर्य से परोपकार
की वृत्ति जागृत होती है और परोपकार
की वृत्ति के बिना किसी को मोक्ष
मिलना सम्भव नहीं है।’’
आचार्य विनोबा भावे - ‘‘मैं
नहीं कहता कि ब्रह्मचर्य आसान
चीज है। हाँ विशाल कल्पना मन में रखोगे तो आसान
हो जाएगा। ऊँचा आदर्श सामने रखना और उसके लिए
संयमी जीवन का आचरण करना,
इसको मैं ब्रह्मचर्य कहता हूँ।’’
महात्मा गाँधी - ‘‘अनेक लोग कहते हैं और मैं
मानता हूँ कि मुझमें बड़ा उत्साह है। मैं
अपनी यह हालत लगभग 20 वर्ष तक विषय
भोग में लिप्त रहने के बाद प्रारम्भ किए गए ब्रह्मचर्य से
हासिल कर सका हूँ। यदि इन 20
वर्षों को भी बचा सका होता तो आज मेरे उत्साह
का पार ही न रहता।’’
आज के समय में चारित्रिक दुर्गति के विभिन्न कारण :-
1. टी.वी. व
सिनेमा की सत्यानाशी हवा।
2. अश्लील साहित्य और चित्र।
3. वर्तमान शिक्षा पद्धति व शिक्षण संस्थानों का वातावरण।
4. कुसंगति।
5. मोबाईल कम्पनियों द्वारा ......।
6. परिवार में पारिवारिक व आत्मीय वातावरण
का अभाव।
7. इन्टरनेट का दुरुपयोग।
ब्रह्मचर्य जीवन जीने के उपाय-
शरीर के अन्दर विद्यमान ‘वीर्य’
ही जीवन शक्ति का भण्डार है।
शारीरिक एवं मानसिक दुराचर तथा प्राकृतिक एवं
अप्राकृतिक मैथुन से इसका क्षरण होता है। कामुक चिंतन से
भी इसका नुकसान होता है। अत: बचने के कुछ
सरल उपाय निम्रानुसार है-
1.ब्रह्मचर्य जीवन जीने के लिये
सबसे पहले ‘मन’ का साधने की आवश्यकता है।
अत: अन्नमय कोष की साधना करें। भोजन पवित्र
एवं सादा होना चाहिए, सात्विक होना चाहिए।
2. कामुक चिंतन आने पर निम्र उपाय करें-
* जिस प्रकार गन्ने का रस बाहर निकल जाने के पश्चात ‘छूछ’
कोई काम का नहीं रह जाता उसी प्रकार
व्यक्ति के शरीर से ‘वीर्य’ के न रहने
पर होता है, इस भाव का चिंतन करें।
* तत्काल निकट के देवालय में चले जायें एवं कुछ देर
वहीं बैठे रहें।
* अच्छे साहित्य का अध्ययन करें। जैसे- ब्रह्मचर्य
जीवन की अनिवार्य आवश्यकता,
मानवी विद्युत के चमत्कार, मन
की प्रचण्ड शक्ति, मन के हारे हार है मन के
जीते जीत, हारिए न हिम्मत आदि।
* अच्छे व्यक्ति के पास चले जायें।
* आपके घर रिश्तेदार में रहने वाली महिला को याद
करें कि मेरे घर में भी माता है, बहन है,
बेटी है। अत: सामने
खड़ी लडक़ी/
महिला भी उसी रूप में है।
* लड़कियों से आँख में आँख मिलाकर बाते न करें
क्योंकि शरीर में विद्यमान विद्युत शक्ति सबसे
ज्यादा ‘आँखों’ के माध्यम से बाहर निकलती है एवं
प्रभावित करती है।
3. मैथुन क्रिया से होने वाले नुकसान निम्रानुसार है-
* शरीर
की जीवनी शक्ति घट
जाती है, जिससे शरीर
की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम
हो जाती है।
* आँखो की रोशनी कम
हो जाती है।
* शारीरिक एवं मानसिक बल कमजोर हो जाता है।
* जितना वीर्य बचाओगे
उतना ही जीवन पाओगे।
* जिस तरह जीने के लिये ऑक्सीजन
चाहिए वैसे ही ‘निरोग’ रहने के लिये
‘वीर्य’।
* ऑक्सीजन प्राणवायु है तो वीर्य
जीवनी शक्ति है।
* अधिक मैथुन से स्मरण शक्ति कमजोर हो जाता है।
* चिंतन विकृत हो जाता है।
* सात्विक भोजन, सकारात्मक चिंतन एवं सेवा कार्यों में व्यस्त
रहने से ‘मन’ नियंत्रित होता है। मन के नियंत्रण से
ब्रह्मचर्य जीवन साधने में ‘सरल’ हो जाता है।
ब्रह्मचर्य रक्षा के उपाय :- (उपाय बताने के पहले सबसे
उनके पिछले गलत आदतों, घटनाओं व समस्याओं को कागज में
लिखवा लें। (पढक़र फाड़ दें।)
1. प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में उठ जाएँ।
2. तेज मिर्च मसालों से बचें। शुद्ध सात्विक
शाकाहारी भोजन करें।
3. सभी नशीले पदार्थों से बचें।
4. गायत्री मन्त्र या अपने ईष्ट मन्त्र का जप व
लेखन करें।
5. नित्य ध्यान (मेडिटेशन) का अभ्यास करें।
6. रात्रि में दूध पीते हों तो सोने के 1-2 पहले
पीएँ व ठण्डा करके पीएँ ।
7. रात्रि शयन के पूर्व महापुरुषों के जीवन चरित्र
का स्वाध्याय करें।
8. मन को खाली न छोड़ें
किसी रचनात्मक कार्य व लक्ष्य से जोड़ रखें।
9. नित्य योगाभ्यास करें। निम्न आसन व प्राणायाम अनिवार्यत:
करें-आसन-पश्चिमोत्तासन, सर्वांगासन, भद्रासन प्राणायाम-
भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम विलोम।
10. एकान्त में लड़कियों से बातचीत मेल मिलाप से
बचें।
काम तत्व के ज्ञान-विज्ञान को भी समझा जाए-
परमात्मा ने
अपनी सारी शक्ति बीज रुप
में मनुष्य को दी गई है। वह
शक्ति कुण्डलिनी कहलाती है। मूलधार
चक्र में कुण्डलिनी महाशक्ति अत्यन्त प्रचण्ड
स्तर की क्षमताएँ दबाए बैठी है।
पुराणों में इसे महाकाली के नाम से पुकारा गया है।
मोटे शब्दों में इसे कामशक्ति कह सकते है।
कामशक्ति का अनुपयोग, सदुपयोग, दुरुपयोग किस प्रकार मनुष्य
के व्यक्तित्व को प्रभावित करता है, उसे आध्यात्मिक काम
विज्ञान कहना चाहिए। इस शक्ति का बहुत सूझ-बूझ के साथ
प्रयोग किया जाना चाहिए, यही ब्रह्मचर्य
का तत्व ज्ञान है।
बिजली की शक्ति से अगणित प्रयोजन
पूरे किए जाते हैं और लाभ उठाए जाते हैं, पर यह
तभी होता है जब उसका ठीक तरह
प्रयोग करना आए, अन्यथा चूक करने वाले के लिए
तो वही बिजली प्राणघातक सिद्ध
होती है।
नर और नारी के बीच पाए जाने वाले प्राण
और रयि, अग्नि और सोम, स्वाहा और स्वधा तत्वों का महत्व
सामान्य नहीं असामान्य है। सृजन और उद् भव
की, उत्कर्ष और आह्लद
की असीम सम्भावनाएँ उसमे
भरी पड़ी है। प्रजा उत्पादन तेा उस
मिलन का बहुत ही सूक्ष्म सा स्थूल और
अति तुच्छ परिणाम है। इस सृष्टि के मूल कारण और चेतना के
आदि स्रोत इन द्विधा संस्करण और संचरण का ठीक
तरह मूल्यांकन किया जाना चाहिए, और इस तथ्य पर ध्यान
दिया जाना चाहिए कि इनका सदुपयोग किस प्रकार विश्व कल्याण
की सर्वतोमुखी प्रगति में सहायक
हो सकता है, और इनका दुरुपयोग मानव जाति के
शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य को किस प्रकार
क्षीण विकृत करके विनाश के गर्त में धकलने के
लिए दुर्दांत दैत्य की तरह
सर्वग्राही संकट उत्पन्न कर सकता है।
अश्लील अवांछनीय और
गोपनीय संयोग कर्म हो सकता है। विकारोत्तेजक
शैली में उसका वर्णन अहितकर हो सकता है। पर
सृष्टि संस्करण के आदि उद् गम प्रकृति पुरुष के संयोग से किस
प्रकार यह द्विधा काम कर रही है यह
जानना तो अनुचित है और न ही अनावश्यक। सच
तो यह है कि इस पञ्चाग्नि विद्या की अवहेलना-
अवमानना से हमने अपना ही अहित किया है।
नर-नारी के बीच प्रकृति प्रदत्त
विधुतधारा किस सीमा तक किसी दिशा में
कितनी और कैसे श्रेयष्कर प्रतिक्रिया उत्नन्न
करती है और उनकी विकृति विनाश
का निमित्त कैसे बनती है? इस
जानकारी को आध्यात्मिक काम विज्ञान कह सकते
हैं।
काम शक्ति को गोपनीय तो माना गया है जिस प्रकार
धन कितना है? कहाँ है? आदि बातों को आमतौर से लोग
गोपनीय रखते हैं। उसकी अनावश्यक
चर्चा करने से अहित होने
की आशंका रहती है।
इसी प्रकार कामतत्व को गोपनीय
ही रखा गया है, पर इसकी महत्ता,
सत्ता और पवित्रता से कभी किसी ने
इन्कार नहीं किया। यह घृणित
नहीं पवित्रतम है। यह हेय
नहीं अभिवन्दनीय है।
भारतीय आध्यात्म शास्त्र के अन्तर्गत शिव और
शक्ति का प्रत्यक्ष समन्वय जिस पूजा प्रतीक में
प्रस्तुत किया गया है उसमें उस रहस्य का सहज
ही रहस्योद् घाटन हो जाता है। शिव को पुरुष
जननेन्द्रिय और
पार्वती को नारी का जननेन्द्रिय
का स्वरूप दिया गया है। उनका सम्मिलित विग्रह
ही अपने देव मन्दिर मे स्थापित है। यह
अश्लील नहीं है। तत्वत: यह
सृष्टि में संचरण और उल्लास उत्पन्न करने वाले प्राण और
रयि, अग्नि और सोम, के संयोग से उत्पन्न होने वाले, महानतम
शक्ति प्रवाह की ओर संकेत है। इस तत्वज्ञान
को समझना न तो अश्लील है और न घृणित, वरन
शक्ति के उद् भव, विकास एवं विनियोग
का उच्चस्तरीय वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारभूत एक
दिव्य संकेत है।
कामशक्ति स्वयं घृणित नहीं है। घृणित तो वह
विडम्बना है, जिसके द्वारा इतनी बहुमूल्य
ज्योतिधारा को शरीर को जर्जर और मन को अध:पतित
करने के लिए अविवेकपूर्ण प्रयुक्त किया जाता है।
सावित्री का कुण्डलिनी का प्राण काम
पतित कैसे हो सकता है? जो जितना उत्कृष्ट है विकृत होने
पर वह उतना ही निकृष्ट बन जाता है यह एक
तथ्य है। काम तत्व के बारे में
भी यही सिद्धांत लागू होता ह

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