आंखों के रोग तथा सुरक्षा Diseases and care of eyes

परिचय-
आंखें हमारे शरीर का एक महत्वपूर्ण
अंग होती हैं। इसलिए हमें
इनकी देखभाल और सुरक्षा में अधिक से अधिक
सावधानी बरतनी चाहिए।
आंखों की छोटी-
छोटी और साधारण
बीमारियां छोटी परेशानी से लेकर
अंधेपन का शिकार तक बना सकती है। हमारे देश में
प्रतिवर्ष हजारों लोग अंधेपन के शिकार होते हैं। कई बार
छोटी सी लापरवाही से हम
लोग अपने जीवन की सबसे अमूल्य
धरोहर से हाथ धो बैठते हैं।
आंखों की छोटी-
छोटी समस्याओं पर ध्यान देकर
तथा सही समय पर उपचार करके
आंखों को बचाया जा सकता है। यदि आंखों में
छोटी सी भी तकलीफ
हो तो हमें शीघ्र ही आंखों के विशेषज्ञ
के पास जाकर आंखों की जांच
करानी चाहिए। हमारे देश की ज्यादातर
निरक्षर जनता को सभी प्रचार-साधनों को इस्तेमाल
करके बुनियादी स्वास्थ्य
जानकारी (विशेषकर
आंखों की जानकारी)
लेनी चाहिए।
हमें केवल इस बात
का ही नहीं ध्यान रखना चाहिए
कि आंखों में कोई तकलीफ होने पर तुरन्त नेत्र
विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए
बल्कि आंखों को किसी कष्ट या हानि से बचाने के लिए
बचाव के उपाय जीवन के प्रारम्भ से अपनाने चाहिए।
घरेलू स्तर पर
मां की जिम्मेदारी होती है
कि वह अपने बच्चों की आंखों पर प्रारम्भ से ध्यान
देना चाहिए। आंखों को किसी प्रकार के चोट , संक्रमण,
इंफेक्शन से, धूल, धुएं, कंकड़, तिनके से,
किसी रसायन के दुष्प्रभाव से, अधिक
टेलीविजन देखने, कम्प्यूटर गेम से, तेज
रोशनी के इस्तेमाल से ही अधिकतर
आंखों को हानि पहुंचती है। इसलिए
आंखों की सुरक्षा और
चिकित्सा की सावधानी जीवनपर्यन्त
रखनी चाहिए।
गर्भावस्था में स्त्रियों की आंखों की
देखभाल और सुरक्षा-
आंखों की देखभाल और सुरक्षा के लिए
बच्चे पर गर्भावस्था के समय से ही ध्यान
देना चाहिए। इसके लिए एक तो मां के भोजन में प्रोटीन
और विटामिन उचित मात्रा में होना चाहिए। दूसरा एंटी-
बायोटिक दवाओं और एंटी-मलेरिया आदि दवाओं से
बचना चाहिए। गर्भवती महिलाओं
को बीमारी होने की अवस्था में
डॉक्टर को अपनी स्थिति बना देनी चाहिए।
प्रसव के बाद शिशु की आंखों की
देखभाल-
प्रसव के बाद शिशु
की आंखों की अच्छी प्रकार
से साफ-सफाई होनी चाहिए। अन्यथा जन्म के समय
की गन्दगी से उसकी आंखों में
इन्फेक्शन हो सकता है। हॉस्पिटलों में यह काम नर्से
अच्छी प्रकार से कर लेती हैं। घर पर
प्रसव होने की स्थिति में प्रशिक्षित और प्रसव
क्रिया में कुशल दाई को ही बुलाना चाहिए तथा स्वयं
भी देख लेना चाहिए कि शिशु की आंखें
अच्छी प्रकार से साफ की गई है
कि नहीं। यदि बच्चे के जन्म के एक सप्ताह बाद
बच्चे की आंखों से पानी आना शुरू हो जाए
तो सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि बच्चे
की पैदायशी नजर कमजोर
भी हो सकती है। ध्यान से
निरीक्षण करने पर दो सप्ताह बाद इसका पता चल
जाता है, नहीं तो एक महीने तक
अवश्य ही आंखों के विशेषज्ञ से जांच
करवानी चाहिए। ध्यान से जांच करने पर दो सप्ताह
बाद ही इसका पता चल जाता है।
हमारे देश में अभी भी एक
बड़ी गलत धारणा है कि काजल, सुरमा डालने से बच्चे
की आंखें बड़ी तथा सुन्दर
लगती है। आंखों की विभिन्न प्रकार
की बीमारियां इन्हीं के कारण
होती है क्योंकि अक्सर सुरमा या काजल
पूरी शुद्धता से नहीं बनाया जाता है।
इसी कारण से डॉक्टर काजल, सुरमे के इस्तेमाल करने
को रोकते हैं।
छोटे बच्चों की सुरक्षा-
छोटे बच्चों को खसरा और दाने (छोटी माता)
के निकलने पर बहुत अधिक सावधानी बरतने
की जरूरत होती है। इससे अधिकतर
बच्चों की आंखों में इंफेक्शन हो जाता है।
ऐसी स्थिति में नेत्ररोग विशेषज्ञ से बच्चे
की चिकित्सा करानी चाहिए। इस तरह से
खसरा और छोटी माता में आंखों पर विशेष ध्यान देने से
रोग के आगे बढ़ने
की आशंका नहीं होती है।
बड़े बच्चों की आंखों की देखभाल और
सुरक्षा-
बाहर जाकर खेलने वाले बड़े
बच्चों को भी इस बारे में विशेष प्रशिक्षण देकर
अच्छी आदतें सिखाई जाने चाहिए। खेलते समय उन्हें
अपने हाथों को साफ रखने के लिए बताइये। खेलकर आने के बाद
अच्छी तरह से हाथ धोकर कोई चीज
खाने के लिए देना चाहिए। घर के सभी सदस्यों के लिए
अलग-अलग तौलिया होना चाहिए। आंखों से पीड़ित
रोगी के कपड़े और तौलिए अलग-अलग होने चाहिए।
हर बार तौलिया, रुमाल से ही आंखें
पोंछनी चाहिए। बच्चे की आंखों में कुछ
गिर जाने से मैले आंचल या गन्दे रुमाल से
आंखों की सफाई
नहीं करनी चाहिए। इस प्रकार
की छोटी-छोटी बातों का ध्यान
रखने से आंखे स्वस्थ बनी रहती है।
बच्चों को तेज धूप में खेलने से रोकना चाहिए।
बच्चों को गिल्ली-डण्डा और क्रिकेट खेलते समय
अपनी और
साथी खिलाड़ी की आंखों की सुरक्षा का ध्यान
रखना चाहिए।
होली की पिचकारी से
आंखों को बचाना चाहिए। यात्रा के समय रेल
की खिड़की के पास
नहीं बैठना चाहिए। यदि बच्चे जिद करें तो उन्हें
विपरीत दिशा में मुंह करके बैठा देना चाहिए ताकि उड़ते
हुए धूल के कण उनकी आंखों में न पडे़।
यदि गलती से धूल के कण, कोयला आदि आंखों में गिर
जाते हैं तो तुरन्त ही आंखों को नीचे
की ओर करके जोर-जोर से झपकाना चाहिए
ताकि आंखों से कोयला या धूल के कण बाहर निकल जाए।
ऐसे समय में आंख
नहीं मलनी चाहिए। यदि इस प्रकार से
आंखों में से कंकड़ न निकलता हो तो आंखों में पानी के
छींटे मारें या साफ मुलायम रुमाल के कोने से बहुत
ही सावधानी से बाहर निकाल देना चाहिए।
यदि फिर भी शिकायत हो तो डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
महिलाओं को प्रारंभ से ही देखना चाहिए
कि उनका बच्चा किताबें ठीक से लेकर बैठता है
या नहीं। कहीं वह पुस्तक एकदम
आंख के पास सटाकर तो नहीं बैठता है या पढ़ते
समय एक आंख का अधिक उपयोग करता हो। इन बातों को विशेष
रूप से ध्यान देना चाहिए। यदि बच्चा किताबें बिल्कुल अपने पास
करके पढ़ता हो तो इससे पता चलता है
कि उसकी आंख कमजोर है।
ऐसी स्थिति में उसे नेत्ररोग विशेषज्ञ के पास ले
जाना चाहिए। यदि नेत्ररोग विशेषज्ञ बच्चे को चश्मा लगवाने
को बोलते हैं तो उसे अवश्य लगवाना चाहिए।
इसके परिणाम स्वरूप नजर पर अधिक जोर देने से बच्चे
की आंखें कमजोर
होती चली जाएंगी। कुछ
लोगों को डर होता है कि यदि हम
अपनी लड़की को अभी से
ही चश्मा लगवा देगें
तो उसकी शादी आसानी से
नहीं हो पायेगी। इसलिए वे
अपनी लड़कियों को चश्मा नहीं लगाते हैं।
चश्मा लगाने से व्यक्ति की सुन्दरता नष्ट
नहीं होती है। इसे लगाने से आंखे
सुरक्षित बनी रहती हैं। फिर
भी यदि चश्मा न लगवाना चाहें तो आजकल `कौटेक्ट
लैंसेज` भी मिलते हैं, उन्हें लगाना चाहिए। कुछ
अपवादों को छोड़कर यह सभी को ठीक
प्रकार से फिट बैठ जाते हैं। आंखों के बारे में
किसी भी प्रकार
की लापरवाही ठीक
नहीं होती है।
आंखों के कमजोर होने पर उनका इलाज अवश्य
ही कराना चाहिए।
आंखों की कमजोरी में विटामिन `ए´ युक्त
खाना, अण्डा, मीट, पपीता, कद्दू, आम,
गाजर आदि का सेवन करना लाभकारी होता है। इससे
नाइट-ब्लांइडनेस (रतौंधी)
की बीमारी नहीं होती है।
इस बीमारी में रात को कम दिखाई पड़ता है।
यह बीमारी अधिक दिनों रहने से
रोगी अंधा भी हो सकता है। कम्प्यूटर
पर अधिक समय तक काम करना तथा अधिक समय तक
टेलीविजन देखना भी आंखों के लिए
हानिकारक होता है।
यदि विवाहित पति और
पत्नी दोनों ही चश्मा लगाते
हों तो दोनों का नंबर मिलकर `हाई` नहीं जाना चाहिए,
क्योंकि इसके परिणाम स्वरूप उत्पन्न होने
वाली सन्तान की आंखें
भी कमजोर हो सकती हैं। यदि दोनों में
एक का नंबर कम और दूसरे का अधिक हो और मिलकर
भी बहुत अधिक न जाए तो दोनों के चश्मा लगाने पर
भी किसी प्रकार से हानिकारक
नहीं होता हो। इस बारे में डॉक्टर की राय
अवश्य ही ले लेनी चाहिए।
स्त्रियों की आंखों की देखभाल और
सुरक्षा-
स्त्रियों को झाड़ू लगाते समय, सामान पर धूल-
मिट्टी साफ करते समय आंखों का विशेष ध्यान
रखना चाहिए कि कहीं धूल या मिट्टी के
कण आंखों में न पड़ जाए। धूल भरी आंधियों के आने
पर आंखों को कपडे़ से ढक लेना चाहिए। कोयला,
लकड़ी या चूल्हा जलाते समय
भी आंखों का ध्यान रखना चाहिए। आंखों को चूल्हे
तथा मिल के निकलने वालों धुंओं से बचाकर रखना चाहिए। वर्तमान
समय में वातावरण धुएं
तथा जहरीली गैसों आदि से प्रदूषित
हो गया है जिसके कारण आंखों की सुरक्षा बहुत
ही आवश्यक हो गई है।
इसलिए यह कहना व्यर्थ है कि बड़े-
बूढ़ों की आंखे आज तक अच्छी है
क्योंकि उनके समय में वातावरण में इतना अधिक प्रदूषण
नहीं था। वर्तमान समय में शुद्ध
हवा नहीं मिल पा रही है
तथा मिलावटी खाद्य-पदार्थों, पढ़ाई,
टी.वी. तथा मानसिक तनाव आदि का जोर
भी आंखों पर पड़
रहा तो बिना आंखों की सुरक्षा किए हुए
नहीं रहा जा सकता है। यदि आपको मधुमेह
की बीमारी
हो तो उसको नियंत्रण में रखना चाहिए।
नहीं तो आंखों के परदे से नजर कमजोर होकर,
अंधेपन की नौबत आ सकती है।
पढ़ाई-लिखाई और आंखों से सम्बन्धित विभिन्न कार्य-
स्त्रियों को सिलाई-बुनाई,
चित्रकारी आदि करते समय सही प्रकार
की मुद्रा में बैठकर काम करना चाहिए अन्यथा नजर
के जल्दी कमजोर हो जाने
की आशंका रहता है। पढ़ाई करते समय
रोशनी न तो अधिक तेज और न ही अधिक
मन्द नहीं होनी चाहिए जिसके कारण
आंखें चौंधियाने न लगे और आंखों पर विपरीत प्रभाव न
पडे़। पढ़ाई करते समय टेबल लैम्प या ट्यूब लाइट का प्रयोग
करना चाहिए। इसी प्रकार हमेशा बैठकर
ही पढ़ना चाहिए। लेटकर पढ़ने से आंखों पर
बुरा प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। यदि आपको लेटकर
ही पढ़ने की इच्छा हो तो पुस्तक और
आंखों के बीच उचित
दूरी होनी चाहिए ताकि आंखों पर कम से
कम जोर पड़े। लगातार पढ़ने-लिखने, घंटों भर
टी.वी. के सामने बैठने से आंखे थक
जाती हैं।
टी.वी. देखते समय
टी.वी.
की स्क्रीन से आंखों के बीच
की दूरी लगभग 10 फुट
की दूरी होनी चाहिए। पिक्चर
आदि देखते समय आंखों को बीच-बीच में
जरूर झपकाना चाहिए। इससे आंखों में थकान
नहीं होती है। आंखों के थक जाने पर
अपनी दोनों हथेलियों से आंखों को बन्द करके कुछ देर
तक आराम देना चाहिए। इसके बाद हवा में टहलना चाहिए।
आंखों में ठण्डे पानी की छींटे
आदि देनी चाहिए। गर्मी के दिनों में
ठण्डा किया हुआ गुलाबजल और थकान-तनाव और
मामूली कष्ट में डॉक्टर से पूछकर आंखों में आई-
ड्रॉप्स डालना चाहिए। ऐसा करने से आंखों को थकान से राहत
मिलेगी।
लगभग 40 वर्ष की आयु के
लोगों को यदि अपनी नजर
थोड़ी सी भी कमजोर लगे
तो उन्हे चश्मा अवश्य ही लगवा लेना चाहिए।
आंखों में दर्द , थकान, आंखों से पानी बहना , रात
को कम दिखाई पड़ना, आंखों के आगे रंगीन तारे दिखाई
पड़ना, कीचड़ आना, आंखों में लाली या
खुजली का होना तथा पास की नजर
ठीक हो तथा दूर की नजर कमजोर
हो तो तुरन्त ही चिकित्सक की राय
लेनी चाहिए।
भोजन और व्यायाम का आंखों पर प्रभाव-
प्रोटीन, विटामिन, विशेष रूप से विटामिन `ए`
युक्त सन्तुलित और पौष्टिक भोजन, पेट की सफाई
और सामान्य व्यायाम करके यदि हम अपने पेट स्वास्थ को बनाए
रखे तो आंखों के किसी भी प्रकार विशिष्ट
भोजन या विशेष प्रकार के
व्यायामों की आवश्यकता नहीं होती है।
परन्तु
आंखों की किसी तकलीफ में
विशेष भोजन और व्यायाम के लिए डॉक्टर की राय
अवश्य ही लेनी चाहिए।

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