जीवन में उपयोगी नियम ----


जीवन में उपयोगी नियम ----
1. जहाँ रहते हो उस स्थान को तथा आस-
पास की जगह को साफ रखो।
2. हाथ पैर के नाखून बढ़ने पर काटते रहो। नख बढ़े
हुए एवं मैल भरे हुए मत रखो।
3. अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को बुधवार व
शुक्रवार के अतिरिक्त अन्य दिनों में बाल
नहीं कटवाना चाहिए। सोमवार को बाल
कटवाने से शिवभक्ति की हानि होती है।
पुत्रवान को इस दिन बाल
नहीं कटवाना चाहिए। मंगलवार को बाल
कटवाना सर्वथा अनुपयुक्त है, मृत्यु का कारण
भी हो सकता है। बुधवार धन
की प्राप्ति कराने वाला है। गुरूवार
को बाल कटवाने से लक्ष्मी और मान
की हानि होती है। शुक्रवार लाभ और यश
की प्राप्ति कराने वाला है। शनिवार मृत्यु
का कारण होता है। रविवार तो सूर्यदेव
का दिन है। इस दिन क्षौर कराने से धन,
बुद्धि और धर्म की क्षति होती है।
4. सोमवार, बुधवार और शनिवार शरीर में तेल
लगाने हेतु उत्तम दिन हैं। यदि तुम्हें ग्रहों के
अनिष्टकर प्रभाव से बचना है
तो इन्हीं दिनों में तेल लगाना चाहिए।
5. शरीर में तेल लगाते समय पहले नाभि एवं
हाथ-पैर की उँगलियों के नखों में भली प्रकार
तेल लगा देना चाहिए।
6. पैरों को यथासंभव खुला रखो।
प्रातःकाल कुछ समय तक हरी घास पर नंगे पैर
टहलो। गर्मियों में मोजे आदि से पैरों को मत
ढँको।
7. ऊँची एड़ी के या तंग पंजों के जूते स्वास्थ्य
को हानि पहुँचाते हैं।
8. पाउडर, स्नो आदि त्वचा के स्वाभाविक
सौंदर्य को नष्ट करके उसे रूखा एवं कुरूप बना देते
हैं।
9. बहुत कसे हुए एवं नायलोन आदि कृत्रिम तंतुओं
से बने हुए कपड़े एवं चटकीले भड़कीले गहरे रंग से कपड़े
तन-मन के स्वास्थ्य के हानिकारक होते हैं। तंग
कपड़ों से रोमकूपों को शुद्ध हवा नहीं मिल
पाती तथा रक्त-संचरण में भी बाधा पड़ती है।
बैल्ट से कमर को ज़्यादा कसने से पेट में गैस बनने
लगती है। ढीले-ढाले सूती वस्त्र स्वास्थ्य के
लिए अति उत्तम होते हैं।
10. कहीं से चलकर आने पर तुरंत जल मत पियो,
हाथ पैर मत धोओ और न ही स्नान करो। इससे
बड़ी हानि होती है। पसीना सूख जाने दो।
कम-से-कम 15 मिनट विश्राम कर लो। फिर
हाथ-पैर धोकर, कुल्ला करके पानी पीयो।
तेज गर्मी में थोड़ा गुड़ या मिश्री खाकर
पानी पीयो ताकि लू न लग सके।
11. अश्लील पुस्तक आदि न पढ़कर ज्ञानवर्ध
पुस्तकों का अध्ययन करना चाहिए।
12. चोरी कभी न करो।
13. किसी की भी वस्तु लें तो उसे सँभाल कर
रखो। कार्य पूरा हो फिर तुरन्त ही वापिस
दे दो।
14. समय का महत्त्व समझो। व्यर्थ बातें, व्यर्थ
काम में समय न गँवाओ। नियमित तथा समय पर
काम करो।
15. स्वावलंबी बनो। इससे मनोबल बढ़ता है।
16. हमेशा सच बोलो। किसी की लालच
या धमकी में आकर झूठ का आश्रय न लो।
17. अपने से छोटे दुर्बल
बालकों को अथवा किसी को भी कभी सत
ाओ मत। हो सके उतनी सबकी मदद करो।
18. अपने मन के गुलाम नहीं परन्तु मन के
स्वामी बनो। तुच्छ इच्छाओं की पूर्ति के
लिए कभी स्वार्थी न बनो।
19. किसी का तिरस्कार, उपेक्षा, हँसी-
मजाक कभी न करो। किसी की निंदा न
करो और न सुनो।
20. किसी भी व्यक्ति,
परिस्थिति या मुश्किल से कभी न डरो परन्तु
हिम्मत से उसका सामना करो।
21. समाज में बातचीत के अतिरिक्त वस्त्र
का बड़ा महत्त्व है। शौकीनी तथा फैशन के
वस्त्र, तीव्र सुगंध के तेल या सेंट का उपयोग
करने वालों को सदा सजे-धजे फैशन रहने
वालों को सज्जन लोग आवारा या लम्पट
आदि समझते हैं। अतः तुम्हें अपना रहन सहन, वेश-
भूषा सादगी से युक्त रखना चाहिए। वस्त्र
स्वच्छ और सादे होने चाहिए।
सिनेमा की अभिनेत्रियों तथा अभिनेताओं
के चित्र छपे हुए अथवा उनके नाम के वस्त्र
को कभी मत पहनो। इससे बुरे संस्कारों से
बचोगे।
22. फटे हुए वस्त्र सिल कर भी उपयोग में लाये
जा सकते हैं, पर वे स्वच्छ अवश्य होने चाहिए।
23. तुम जैसे लोगों के साथ उठना-बैठना,
घूमना-फिरना आदि रखोगे, लोग तुम्हें
भी वैसा ही समझेंगे। अतः बुरे
लोगों का साथ सदा के लिए छोड़कर अच्छे
लोगों के साथ ही रहो। जो लोग बुरे कहे
जाते हैं, उनमें तुम्हे दोष न भी दिखें,
तो भी उनका साथ मत करो।
24. प्रत्येक काम पूरी सावधानी से करो।
किसी भी काम को छोटा समझकर
उसकी उपेक्षा न करो। प्रत्येक काम ठीक समय
पर करो। आगे के काम को छोड़कर दूसरे काम में
सत लगो। नियत समय पर काम करने का स्वभाव
हो जाने पर कठिन काम भी सरल बन जाएँगे।
पढ़ने में मन लगाओ। केवल परीक्षा में उत्तीर्ण
होने के लिए नहीं, अपितु ज्ञानवृद्धि के लिए
पूरी पढ़ाई करो। उत्तम भारतीय
सदग्रंथों का नित्य पाठ करो। जो कुछ पढ़ो,
उसे समझने की चेष्टा करो। जो तुमसे श्रेष्ठ है,
उनसे पूछने में संकोच मत करो।
25. अंधे, काने-कुबड़े, लूले-लँगड़े
आदि को कभी चिढ़ाओ मत, बल्कि उनके
साथ और ज़्यादा सहानुभूतिपूर्वक बर्ताव
करो।
26. भटके हुए राही को, यदि जानते हो तो,
उचित मार्ग बतला देना चाहिए।
27. किसी के नाम आया हुआ पत्र मत पढ़

28. किसी के घर जाओ तो उसकी वस्तुओं
को मत छुओ। यदि आवश्यक हो तो पूछकर
ही छुओ। काम हो जाने पर उस वस्तु को फिर
यथास्थान रख दो।
29. बस में रेल के डिब्बे में, धर्मशाला व मंदिर में
तथा सार्वजनिक भवनों में अथवा स्थलों में न
तो थूको, न लघुशंका आदि करो और न
वहाँ फलों के छिलके या कागज
आदि डालो। वहाँ किसी भी प्रकार
की गंदगी मत करो। वहाँ के
नियमों का पूरा पालन करो।
30. हमेशा सड़क की बायीं ओर से चलो। मार्ग
में चलते समय अपने दाहिनी ओर मत थूको, बाईं
ओर थूको। मार्ग में खड़े होकर बातें मत करो।
बात करना हो तो एक किनारे हो जाएं। एक
दूसरे के कंधे पर हाथ रखकर मत चलो। सामने
से .या पीछे से अपने से बड़े-बुजुर्गों के आने पर बगल
हो जाओ। मार्ग में काँटें, काँच के टुकड़े
या कंकड़ पड़े हों तो उन्हें हटा दो।
31. दीन-हीन तथा असहायों व
ज़रूरतमंदों की जैसी भी सहायता व सेवा कर
सकते हो, उसे अवश्य करो, पर दूसरों से तब तक
कोई सेवा न लो जब तक तुम सक्षम हो।
किसी की उपेक्षा मत करो।
32. किसी भी देश या जाति के झंडे,
राष्ट्रगीत, धर्मग्रन्थ
तथा महापुरूषों का अपमान कभी मत करो।
उनके प्रति आदर रखो। किसी धर्म पर आक्षेप मत
करो।
33. कोई अपना परिचित, पड़ोसी, मित्र
आदि बीमार हो अथवा किसी मुसीबत में
पड़ा हो तो उसके पास कई बार
जाना चाहिए और
यथाशक्ति उसकी सहायता करनी चाहिए
एवं तसल्ली देनी चाहिए।
34. यदि किसी के
यहाँ अतिथि बनो तो उस घर के
लोगों को तुम्हारे लिए कोई विशेष प्रबन्ध न
करना पड़े, ऐसा ध्यान रखो। उनके
यहाँ जो भोजनादि मिले, उसे प्रशंसा करके
खाओ।
35. पानी व्यर्थ में मत गिराओ।
पानी का नल और
बिजली की रोशनी अनावश्यक खुला मत
रहने दो।
36. चाकू से मेज मत खरोंचो। पेन्सिल या पेन से
इधर-उधर दाग मत करो। दीवार पर मत लिखो।
37. पुस्तकें खुली छोड़कर मत जाओ। पुस्तकों पर
पैर मत रखो और न उनसे तकिए का काम लो।
धर्मग्रन्थों को विशेष आदर करते हुए स्वयं शुद्ध,
पवित्र व स्वच्छ होने पर ही उन्हें स्पर्श
करना चाहिए। उँगली में थूक लगा कर
पुस्तकों के पृष्ठ मत पलटो।
38. हाथ-पैर से भूमि कुरेदना, तिनके तोड़ना,
बार-बार सिर पर हाथ फेरना, बटन टटोलते
रहना, वस्त्र के छोर उमेठते रहना, झूमना,
उँगलियाँ चटखाते रहना- ये बुरे स्वभाव के
चिह्न हैं। अतः ये सर्वथा त्याज्य हैं।
39. मुख में उँगली, पेन्सिल, चाकू, पिन, सुई,
चाबी या वस्त्र का छोर देना, नाक में
उँगली डालना, हाथ से या दाँत से तिनके
नोचते रहना, दाँत से नख काटना,
भौंहों को नोचते रहना- ये गंदी आदते हैं। इन्हें
यथाशीघ्र छोड़ देना चाहिए।
40. पीने के पानी या दूध आदि में उँगली मत
डुबाओ।
41. अपने से श्रेष्ठ, अपने से नीचे
व्यक्तियों की शय्या-आसन पर न बैठो।
42. देवता, वेद, द्विज, साधु, सच्चे महात्मा, गुरू,
पतिव्रता, यज्ञकर्त्ता,
तपस्वी आदि की निंदा-परिहास न
करो और न सुनो।
43. अशुभ वेश न धारण करो और न ही मुख से
अमांगलिक वचन बोलो।
44. कोई बात बिना समझे मत बोलो। जब तुम्हें
किसी बात की सच्चाई का पूरा पता हो,
तभी उसे करो। अपनी बात के पक्के रहो। जिसे
जो वचन दो, उसे पूरा करो। किसी से जिस
समय मिलने का या जो कुछ काम करने
का वादा किया हो वह वादा समय पर
पूरा करो। उसमें विलंब मत करो।
45. नियमित रूप से भगवान
की प्रार्थना करो। प्रार्थना से
जितना मनोबल प्राप्त होता है उतना और
किसी उपाय से नहीं होता।
46. सदा संतुष्ट और प्रसन्न रहो।
दूसरों की वस्तुओं को देखकर ललचाओ मत।
47. नेत्रों की रक्षा के लिए न बहुत तेज प्रकाश
में पढ़ो, न बहुत मंद प्रकाश में।
दोनों हानिकारक हैं। इस प्रकार
भी नहीं पढ़ना चाहिए कि प्रकाश सीधे
पुस्तक के पृष्ठों पर पड़े। लेटकर, झुककर या पुस्तक
को नेत्रों के बहुत नज़दीक लाकर
नहीं पढ़ना चाहिए। जलनेति से
चश्मा नहीं लगता और
यदि चश्मा हो तो उतर जाता है।
48. जितना सादा भोजन, सादा रहन-सहन
रखोगे, उतने ही स्वस्थ रहोगे। फैशन की वस्तुओं
का जितना उपयोग करोगे या जिह्वा के
स्वाद में जितना फँसोगे, स्वास्थ्य
उतना ही दुर्बल होता जाएगा।
यदि विद्यार्थी उचित दिनचर्या एवं
उपरोक्त नियमों के अनुसार जीवन
जियेगा तो निश्चय ही महान
बनता जाएगा।

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